सआदत हसन मंटो हिंदी और उर्दू के मोपांसा (मशहूर फ्रेंच साहित्यकार) हैं। उसी तरह सच-गुसार, उसी तरह की सच-बयानी और उसी तरह से बदनाम भी। वे जानते थे कि शायद नेकनामी की तरफ जाने वाले रास्ते की पहली सीढ़ी बदनामी ही है। उनके प्रिय दोस्त और शायर साहिर लुधियानवी के शब्दों में कहें तो मंटो यह मानते थे - 'बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं हूँ मैं।'
इस किताब में आपको उनकी कुछ प्रतिनिधि कहानियाँ पढ़नें को मिलेंगी। इन कहानियों को पढ़ते वक्त आपको महसूस हो सकता है कि समाज में आमतौर पर जिन चीजों के बारे में लोग बात करने से भी कतराते हैं, उनपर मंटो बेबाकी से अपनी कहानियों में बात करते हैं। उम्मीद है, इस किताब में प्रस्तुत कहानियाँ पाठकों को पसंद आएँगी।