'मेडिसन लाइट इन ट्विलाइट' उपन्यास में लेखक चिकित्सा जीवन के विभिन्न रंगों का वर्णन करता है और रोजमर्रा की जिंदगी में दवाओं की उपयोगिता की पुष्टि करता है। आधुनिक समाज में विभिन्न पथों की अपनी उपयोगिता है, हालांकि एलोपैथिक दवाएं शीर्ष स्थान पर हैं। एलोपैथिक दवाइयां लिखकर वैद्य जी खूब पैसा कमाते हैं। डॉ. काम्या और डॉ. प्रीतिलता कोरोना महामारी के दौरान भी पैसा कमाती हैं । अफगानिस्तान के मरीजों के दुखों को सभी की दया और सहानुभूति की जरूरत है। सैंटियागो की तरह गिरिजा भी जीवन की तमाम विषम परिस्थितियों में अपना साहस और धैर्य नहीं खोती हैं और पूरी शिद्दत से छात्रों को पढ़ाती रहती हैं। संतों की तरह, वैद्य जी अपने परोपकारी उत्साह के लिए समाज में प्रशंसित हैं। भारत सरकार के प्रयास सराहनीय हैं क्योंकि अकेले यूपी में बीमार लोगों की देखभाल के लिए नौ मेडिकल कॉलेज बनाने की योजना है। कोरोना का डटकर, जोश और पूरे उमंग के साथ मुकाबला करने के लिए अधिकारियों की दाद देनी होगी। उपन्यास इस प्रश्न का उत्तर देता है जीवन कैसे जीना है?
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