Error loading page.
Try refreshing the page. If that doesn't work, there may be a network issue, and you can use our self test page to see what's preventing the page from loading.
Learn more about possible network issues or contact support for more help.

बचपन के झरोखे से (काव्य संग्रह)

ebook

बालमन स्वभाव से ही सरल व चंचल होता है। छोटी-छोटी बातों में ही कभी प्रसन्न तो कभी रूठ जाता है। उलाहना देना तो बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है। वो इसका प्रयोग बखूबी करते भी हैं। बच्चों के इस तरह रूठने, मनाने, उलाहना देने और छोटी-सी बातों में ही खुश हो जाने के विभिन्न भावों को मैंने कुछ कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त किया है।
मेरा मानना है कि बच्चों का मन कोरा कागज़ होता है। उन्हें हमारी संस्कृति और संस्कार के विषय में जो भी इस समय सिखाया जा सकता है, वह आयु के किसी और पड़ाव पर सिखाना सम्भव नहीं है। हमें इसी आयु में ही नैतिकता के बीज उनके कोमल मानस पटल में बो देने चाहिए। यह महत्त्वपूर्ण कार्य कड़े अनुशासन के स्थान पर कविताओं व कहानियों के माध्यम से रुचिकर बनाकर करना चाहिए।
बालमन स्वभाव से ही सरल व चंचल होता है। छोटी-छोटी बातों में ही कभी प्रसन्न तो कभी रूठ जाता है। उलाहना देना तो बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है। वो इसका प्रयोग बखूबी करते भी हैं। बच्चों के इस तरह रूठने, मनाने, उलाहना देने और छोटी-सी बातों में ही खुश हो जाने के विभिन्न भावों को मैंने कुछ कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त किया है।
मेरा मानना है कि बच्चों का मन कोरा कागज़ होता है। उन्हें हमारी संस्कृति और संस्कार के विषय में जो भी इस समय सिखाया जा सकता है, वह आयु के किसी और पड़ाव पर सिखाना सम्भव नहीं है। हमें इसी आयु में ही नैतिकता के बीज उनके कोमल मानस पटल में बो देने चाहिए। यह महत्त्वपूर्ण कार्य कड़े अनुशासन के स्थान पर कविताओं व कहानियों के माध्यम से रुचिकर बनाकर करना चाहिए।


Expand title description text
Publisher: वर्जिन साहित्यपीठ

Kindle Book

  • Release date: October 11, 2018

OverDrive Read

  • ISBN: 9780463396896
  • Release date: October 11, 2018

EPUB ebook

  • ISBN: 9780463396896
  • File size: 212 KB
  • Release date: October 11, 2018

Formats

Kindle Book
OverDrive Read
EPUB ebook

subjects

Fiction Poetry

Languages

Hindi

बालमन स्वभाव से ही सरल व चंचल होता है। छोटी-छोटी बातों में ही कभी प्रसन्न तो कभी रूठ जाता है। उलाहना देना तो बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है। वो इसका प्रयोग बखूबी करते भी हैं। बच्चों के इस तरह रूठने, मनाने, उलाहना देने और छोटी-सी बातों में ही खुश हो जाने के विभिन्न भावों को मैंने कुछ कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त किया है।
मेरा मानना है कि बच्चों का मन कोरा कागज़ होता है। उन्हें हमारी संस्कृति और संस्कार के विषय में जो भी इस समय सिखाया जा सकता है, वह आयु के किसी और पड़ाव पर सिखाना सम्भव नहीं है। हमें इसी आयु में ही नैतिकता के बीज उनके कोमल मानस पटल में बो देने चाहिए। यह महत्त्वपूर्ण कार्य कड़े अनुशासन के स्थान पर कविताओं व कहानियों के माध्यम से रुचिकर बनाकर करना चाहिए।
बालमन स्वभाव से ही सरल व चंचल होता है। छोटी-छोटी बातों में ही कभी प्रसन्न तो कभी रूठ जाता है। उलाहना देना तो बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है। वो इसका प्रयोग बखूबी करते भी हैं। बच्चों के इस तरह रूठने, मनाने, उलाहना देने और छोटी-सी बातों में ही खुश हो जाने के विभिन्न भावों को मैंने कुछ कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त किया है।
मेरा मानना है कि बच्चों का मन कोरा कागज़ होता है। उन्हें हमारी संस्कृति और संस्कार के विषय में जो भी इस समय सिखाया जा सकता है, वह आयु के किसी और पड़ाव पर सिखाना सम्भव नहीं है। हमें इसी आयु में ही नैतिकता के बीज उनके कोमल मानस पटल में बो देने चाहिए। यह महत्त्वपूर्ण कार्य कड़े अनुशासन के स्थान पर कविताओं व कहानियों के माध्यम से रुचिकर बनाकर करना चाहिए।


Expand title description text