"यदि आज बेटी नहीं तो कल माँ नहीं" सोचो ! हमारे समाज का भविष्य क्या होगा?
"यत्र नार्यस्तु पूजन्ते, रमन्ते तत्र देवता" की गौरवशाली परंपरा का संवाहक हमारा देश, आज वीभत्स विचारों की कि स खाई में डूबता जा रहा है? इस पुस्तक के द्वारा समाज में व्या प्त एक वीभत्स विचार "कन्या भ्रूण हत्या " पर कठोर प्रहार करने के साथ-साथ, पूरी कोशि श की गई है कि सुप्त पड़े मानव समाज को जगाया जाए और नि ष्ठुर हुए मन में स्नेह-संवेदना जागृत की जाए।
पुस्तक में बेटी के जन्म से लेकर विदाई तक के मधुर पलों को विभिन्न भावों के माध्यम से अभि व्यक्त कि या गया है। बेटी, कहीं माँ की परछाई है तो कहीं माँ की अंतरंग सखी बनकर माँ का संबल बन जाती है। बेटी,
पि ता का मान है, स्वाभि मान है। वह पि ता के मन आकाश में चमकने वाली देदीप्यमान निहारिका है।
बेटी, मानव समाज के शुष्क पड़े मन को सींचने वाली, सजल भावों से भरी निर्झरणी है, जिसके द्वारा हमारा समाज सदियों से पल्लवित व पोषित होता रहा है और होता रहेगा।
- सुमनलता शर्मा