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Rankshetram Part 5 Dandkaranya Sangram

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आर्यावर्त के विभिन्न राज्यों के एक एक प्रांत में सात सात मायावी असुरों को भेजा गया। तीन प्रमुख नीतियों द्वारा मानव को मानव का शत्रु बनाकर उनकी संस्कृति को तुच्छ सिद्ध करके असुर संस्कृति के व्यापक फैलाव का षड्यंत्र रचा गया। कितने ही राजा या तो मारे गये, या अपना सिंहासन छोड़कर भाग गये। पाँच असुर महारथियों की रची प्रपंच कथाओं ने असुरेश्वर दुर्भीक्ष को भी ये विश्वास दिला दिया कि भटके हुये मानवों को असुर संस्कृति के आधीन करना आवश्यक है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु दुर्भीक्ष ने अपने एकमात्र बचे वंशज विदर्भराज शत्रुंजय को सम्राट बनाने का संकल्प लिया। उसके इस संकल्प का प्रतिरोध करने और मानव संस्कृति के रक्षण के लिए पौरवराज भरत अपने सारे मित्र राजाओं को लेकर विदर्भ से युद्ध की घोषणा कर देते हैं। वहीं असुरेश्वर दुर्भीक्ष भी अपनी समस्त सेना जुटाकर युद्ध की चुनौती स्वीकार करता है। युद्ध से पूर्व दुर्भीक्ष ब्रह्मऋषि विश्वामित्र के पास आकर उनके दिये हुये वचन का स्मरण कराता है। विश्वामित्र उसे विश्वास दिलाते हैं कि युद्ध के अंत में उसके समक्ष दो विकल्प आयेंगे। उस समय अपने माने हुये धर्म का अनुसरण करते हुये यदि दुर्भीक्ष ने उचित विकल्प का चुनाव किया तो वो स्वयं उसके एकमात्र वंशज शत्रुंजय का रक्षण करेंगे। तत्पश्चात दण्डकारण्य की भूमि पर आरंभ होता है ऐसा भीषण महासमर, जिसमें रणचंडी के युगों की प्यास बुझाने का सामर्थ्य है। क्या होंगे वो दो विकल्प जिसका चुनाव केवल दुर्भीक्ष का ही नहीं अपितु समग्र मनुजजाति का प्रारब्ध तय करेगा?


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Publisher: Anjuman prakashan

Kindle Book

  • Release date: May 21, 2021

OverDrive Read

  • ISBN: 9789388556552
  • Release date: May 21, 2021

EPUB ebook

  • ISBN: 9789388556552
  • File size: 531 KB
  • Release date: May 21, 2021

Formats

Kindle Book
OverDrive Read
EPUB ebook

subjects

Fiction Literature

Languages

Hindi

आर्यावर्त के विभिन्न राज्यों के एक एक प्रांत में सात सात मायावी असुरों को भेजा गया। तीन प्रमुख नीतियों द्वारा मानव को मानव का शत्रु बनाकर उनकी संस्कृति को तुच्छ सिद्ध करके असुर संस्कृति के व्यापक फैलाव का षड्यंत्र रचा गया। कितने ही राजा या तो मारे गये, या अपना सिंहासन छोड़कर भाग गये। पाँच असुर महारथियों की रची प्रपंच कथाओं ने असुरेश्वर दुर्भीक्ष को भी ये विश्वास दिला दिया कि भटके हुये मानवों को असुर संस्कृति के आधीन करना आवश्यक है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु दुर्भीक्ष ने अपने एकमात्र बचे वंशज विदर्भराज शत्रुंजय को सम्राट बनाने का संकल्प लिया। उसके इस संकल्प का प्रतिरोध करने और मानव संस्कृति के रक्षण के लिए पौरवराज भरत अपने सारे मित्र राजाओं को लेकर विदर्भ से युद्ध की घोषणा कर देते हैं। वहीं असुरेश्वर दुर्भीक्ष भी अपनी समस्त सेना जुटाकर युद्ध की चुनौती स्वीकार करता है। युद्ध से पूर्व दुर्भीक्ष ब्रह्मऋषि विश्वामित्र के पास आकर उनके दिये हुये वचन का स्मरण कराता है। विश्वामित्र उसे विश्वास दिलाते हैं कि युद्ध के अंत में उसके समक्ष दो विकल्प आयेंगे। उस समय अपने माने हुये धर्म का अनुसरण करते हुये यदि दुर्भीक्ष ने उचित विकल्प का चुनाव किया तो वो स्वयं उसके एकमात्र वंशज शत्रुंजय का रक्षण करेंगे। तत्पश्चात दण्डकारण्य की भूमि पर आरंभ होता है ऐसा भीषण महासमर, जिसमें रणचंडी के युगों की प्यास बुझाने का सामर्थ्य है। क्या होंगे वो दो विकल्प जिसका चुनाव केवल दुर्भीक्ष का ही नहीं अपितु समग्र मनुजजाति का प्रारब्ध तय करेगा?


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