वैदिक काल से ही नारी स्वातंत्र्य के उदाहरणों के साथ-साथ नारी को वस्तु मानने और उसके घुटन में जीने के उदाहरणों की कमी नहीं है। उस समय नारी विमर्श न रहा हो किन्तु पुरुष प्रधान व्यवस्था के विरुद्ध उठने वाले स्वर तब भी थे। शूर्पणखा की माँ कैकसी जहाँ स्त्री को वस्तु समझने और घुटन में जीने का उदाहरण है वहीं स्वयं शूर्पणखा इस व्यवस्था को नकारती खड़ी है। वह अपने महाशक्तिशाली भाई रावण के अत्याचार से पीड़ित होने पर, उसके दर्प को कुचलने के दुरूह और फिसलन भरे मार्ग पर एक लाठी के सहारे चलते हुये एक व्यूह की रचना करती है। यह लाठी कौन बना, स्वयं राम या कोई और यह निर्णय आप पर...
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