अपने प्रयाण के निष्कर्ष पर पहुँचने के बाद कृष्ण को एक बार पुनः अपना बचपन याद आ गया। जब वे सुबह उठकर माता यशोदा और बाबा नन्द के चरण स्पर्श करते थे तो आशीष देते हुए उन लोगों की जिह्वा थकती नहीं थी। माँ उन्हें नहला धुला कर तैयार करतीं, फिर वे पास के शिव मन्दिर में जाकर पूजन करके आते तो माँ उन्हें मक्खन, दूध और फल का कलेवा करातीं। उन्हें अपने बचपन की शरारतें याद आने लगीं। माँ बहुत मेहनत से उनके लिए दूध से दही और मक्खन तैयार करती थीं और वे चोरी से उसे अपने मित्रों को बाँट देते थे, इस कार्य में उनसे बहुधा दही या मक्खन की मटकी फूट जाया करती थी। माँ को उनकी इस शरारत पर हँसी तो आती ही थी, वे परेशान भी हो जाया करती थीं।
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