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Seeta Sochti Thin

ebook


सीता जा चुकी थीं; किन्तु सच तो ये था कि वे शरीर से भले ही नहीं थीं, किन्तु लोगों के हृदय में उनका साम्राज्य था। दरबार लगा हुआ था। कैकेयी के मायके, केकय देश से आने वाले समाचार चिन्तित करने वाले थे। गन्धर्वों ने वहाँ बहुत उत्पात मचा रखा था, और वर्तमान नरेश; कैकेयी का भाई युधाजित, उनका उचित प्रतिकार नहीं कर पा रहा था। अयोध्या का राज्य केकय की सहायता करना चाहता था, किन्तु अभी तक वहाँ से कोई सहायता माँगी नहीं गयी थी, अत: दरबार ने इस सम्बन्ध में प्रतीक्षा की बात की। कुछ अन्य समाचार भी थे, उनकी समीक्षा भी हुई। सीता के प्रयाण के बाद से जनकपुरी और मिथिला के सम्बन्धों में वह ऊष्मा नहीं रह गयी थी। उन सम्बन्धों पर भी इस सभा में चर्चा हुई और स्वाभाविक ही अश्वमेध यज्ञ और सीता की बातें भी आयीं। सीता की बातें राम के हृदय में पीड़ा भर देती थीं। चर्चाएँ समाप्त हुर्इं तो राम उठ पड़े। बाहर आये तो शाम हो चुकी थी। मन कुछ उदास सा हो रहा था। वे नित्य के विपरीत, अपने कक्ष में जाने के स्थान पर, महल की सीढ़ियों की ओर बढ़ गये। छत पर पहुँचे तो हवा ठण्ढी और कुछ तेज थी। उन्होंने खड़े होकर आसमान की ओर ऐसे देखा, जैसे कुछ खोज रहे हों।


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Publisher: Anjuman prakashan

Kindle Book

  • Release date: June 14, 2021

OverDrive Read

  • Release date: June 14, 2021

EPUB ebook

  • File size: 225 KB
  • Release date: June 14, 2021

Formats

Kindle Book
OverDrive Read
EPUB ebook

subjects

Fiction Literature

Languages

Hindi


सीता जा चुकी थीं; किन्तु सच तो ये था कि वे शरीर से भले ही नहीं थीं, किन्तु लोगों के हृदय में उनका साम्राज्य था। दरबार लगा हुआ था। कैकेयी के मायके, केकय देश से आने वाले समाचार चिन्तित करने वाले थे। गन्धर्वों ने वहाँ बहुत उत्पात मचा रखा था, और वर्तमान नरेश; कैकेयी का भाई युधाजित, उनका उचित प्रतिकार नहीं कर पा रहा था। अयोध्या का राज्य केकय की सहायता करना चाहता था, किन्तु अभी तक वहाँ से कोई सहायता माँगी नहीं गयी थी, अत: दरबार ने इस सम्बन्ध में प्रतीक्षा की बात की। कुछ अन्य समाचार भी थे, उनकी समीक्षा भी हुई। सीता के प्रयाण के बाद से जनकपुरी और मिथिला के सम्बन्धों में वह ऊष्मा नहीं रह गयी थी। उन सम्बन्धों पर भी इस सभा में चर्चा हुई और स्वाभाविक ही अश्वमेध यज्ञ और सीता की बातें भी आयीं। सीता की बातें राम के हृदय में पीड़ा भर देती थीं। चर्चाएँ समाप्त हुर्इं तो राम उठ पड़े। बाहर आये तो शाम हो चुकी थी। मन कुछ उदास सा हो रहा था। वे नित्य के विपरीत, अपने कक्ष में जाने के स्थान पर, महल की सीढ़ियों की ओर बढ़ गये। छत पर पहुँचे तो हवा ठण्ढी और कुछ तेज थी। उन्होंने खड़े होकर आसमान की ओर ऐसे देखा, जैसे कुछ खोज रहे हों।


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