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Chaand Dinner Par Baitha Hai

ebook

Swapnil Tiwari is a Hollywood lyricist. He is a exceptional poet in young breed. Recently he wrote lyrics of hit Hollywood film, Sone ke teetu ki Sweety. This book is a ghazal collection written by him. स्वप्निल तिवारी नये शायर हैं. लेकिन उन के नाम से मेरे ज़हन की शनासाई बरसों पुरानी हैं. इस के बावजूद उन की किताब 'br>चाँद डिनर पर बैठा है' पढने से पहले उन से कोई उम्मीद नहीं लगा रक्खी थी जिस के तहत मुझे ये कहना पड़ता कि वो मेरी उम्मीद पर खरे नहीं उतरे, या मुझे वो मेरी उम्मीद से ज़ियादा पसंद आये. किताब खोलने से पहले उन की शायरी के त'अल्लुक़ से मैं बिलकुल ख़ाली और सादा था. किताब खुली तो मेरे अन्दर अँधेरा होने लगा जैसे किसी सिनेमा हॉल का दरवाज़ा बंद कर के उस की सारी बत्तियां बुझा दी गयी हों. उस अँधेरे के साथ मेरा पूरा वजूद सिनेमा के स्क्रीन में तब्दील हो गया. मेरे अन्दर और बाहर बयकवक़्त कई फ़िल्मों की चहल-पहल शुरू'अ हो गई. वो फ़िल्में जिन की रचना स्वप्निल ने अपनी शायरी में की थी. अन्दर के अँधेरे ने धीरे-धीरे रात का रूप धारण कर लिया. रात की फ़ज़ा पर दूर तक एक आसमान सा फैलता चला गया. रात की सियाही, बिलकुल काला असमान और फिर आसमान में ढेर सारे सितारे और कई br>चाँद एक साथ रौशन हो गए. स्वप्निल द्वारा उन की शायरी में रची गयी ये रात बहुत हसीन थी जो अब भी मुझ में बाक़ी है ख़ाब की तरह. मैं इस रात के साथ देर तक रतजगा करना चाहता हूँ. हालाँकि मुझे यक़ीन है के स्वप्निल जब इस रात से सुब्ह कशीद करेंगे तो वो सुब्ह इस रात से ज़ियादा ख़ूबसूरत होगी. मुझे उस सुब्ह का इंतज़ार है और उस सुब्ह के सूरज का भी जो स्वप्निल की शायरी के नाम एक बड़े दिन का ऐलान करने वाला है. - शकील आज़मी - 15 दिसम्बर 2016 (मुंबई).


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Publisher: Anybook

Kindle Book

  • Release date: July 21, 2021

OverDrive Read

  • Release date: July 21, 2021

EPUB ebook

  • File size: 187 KB
  • Release date: July 21, 2021

Formats

Kindle Book
OverDrive Read
EPUB ebook

Languages

Hindi

Swapnil Tiwari is a Hollywood lyricist. He is a exceptional poet in young breed. Recently he wrote lyrics of hit Hollywood film, Sone ke teetu ki Sweety. This book is a ghazal collection written by him. स्वप्निल तिवारी नये शायर हैं. लेकिन उन के नाम से मेरे ज़हन की शनासाई बरसों पुरानी हैं. इस के बावजूद उन की किताब 'br>चाँद डिनर पर बैठा है' पढने से पहले उन से कोई उम्मीद नहीं लगा रक्खी थी जिस के तहत मुझे ये कहना पड़ता कि वो मेरी उम्मीद पर खरे नहीं उतरे, या मुझे वो मेरी उम्मीद से ज़ियादा पसंद आये. किताब खोलने से पहले उन की शायरी के त'अल्लुक़ से मैं बिलकुल ख़ाली और सादा था. किताब खुली तो मेरे अन्दर अँधेरा होने लगा जैसे किसी सिनेमा हॉल का दरवाज़ा बंद कर के उस की सारी बत्तियां बुझा दी गयी हों. उस अँधेरे के साथ मेरा पूरा वजूद सिनेमा के स्क्रीन में तब्दील हो गया. मेरे अन्दर और बाहर बयकवक़्त कई फ़िल्मों की चहल-पहल शुरू'अ हो गई. वो फ़िल्में जिन की रचना स्वप्निल ने अपनी शायरी में की थी. अन्दर के अँधेरे ने धीरे-धीरे रात का रूप धारण कर लिया. रात की फ़ज़ा पर दूर तक एक आसमान सा फैलता चला गया. रात की सियाही, बिलकुल काला असमान और फिर आसमान में ढेर सारे सितारे और कई br>चाँद एक साथ रौशन हो गए. स्वप्निल द्वारा उन की शायरी में रची गयी ये रात बहुत हसीन थी जो अब भी मुझ में बाक़ी है ख़ाब की तरह. मैं इस रात के साथ देर तक रतजगा करना चाहता हूँ. हालाँकि मुझे यक़ीन है के स्वप्निल जब इस रात से सुब्ह कशीद करेंगे तो वो सुब्ह इस रात से ज़ियादा ख़ूबसूरत होगी. मुझे उस सुब्ह का इंतज़ार है और उस सुब्ह के सूरज का भी जो स्वप्निल की शायरी के नाम एक बड़े दिन का ऐलान करने वाला है. - शकील आज़मी - 15 दिसम्बर 2016 (मुंबई).


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